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Showing posts from August, 2024

गायत्री मंत्र के अश्लील अनुवाद का खण्डन।

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  Written By : Vedic Dharmi Ashish  वेदों के गायत्री मंत्र जैसे एक पवित्र तथा प्रशिद्ध मंत्र जो शुक्ल यजुर्वेद (३६/३) में आता है उसको आज कल विधर्मीयों के द्वारा बदनाम करने की कोशिश किया जा रहा है। वामपंथी, नव बौद्ध , मुस्लिम आदि विधर्मी जिनको वैदिक व्याकरण का घंटा ज्ञान नहीं है यह लोग आज गायत्री मंत्र पे अनुवाद कर रहें है और वह भी अपने मन मुताबिक। इस लेख में हम इन्ही मूर्खों के अज्ञानता को उजागर करेंगे। पहले देख लेते है इन जाहिलो के द्वारा गायत्री मंत्र के संस्कृत शब्दों का किस प्रकार व्याख्या किया गया है जो आज कल इंटरनेट में प्रसारित हो रहे हैं। भू:,भुवः,स्वः का अर्थ : वामपंथियों के गलत अनुवाद  गायत्री मंत्र के प्रथम तीन शब्द है भू: भुवः स्वः । अब इसमें जो "भू:" शब्द है उसका अनुवाद इन "प्रतिभा एक डायरी" नामक वामपंथी वेबसाईट के मूर्खों ने किया है "भूमि पर" । अब इन जाहिलो को मूलभूत संस्कृत व्याकरण के शब्दरूप पता होता तो भू: का अर्थ भूमि पर नही करते क्यू की यह शब्द प्रथमा विभक्ति एक वचन में आया है इसलिए इसका अर्थ भूमि पर नही हो सकता। जब की "भूमि पर&

महर्षी दयानंद के यजुर्वेद (3/6) भाष्य में विज्ञान की प्रमाणिकता।

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Written By - Vedic Dharmi Ashish    ईश्वरीय वरदान वेद में अनेकों गुढ़ ज्ञान और विज्ञान छुपा है जिसको हमारे पुराने पारंपरिक आचार्य लोग तक नहीं पहचान पाए तथा उनसे वेदों के भाष्य करने में अनेकों त्रुटी भी हुई ।   लेकिन बाद के आचार्यों ने भी उन त्रुटियों को ठीक करने के वाजय अपने हट धर्मिता के कारण वेदों के विज्ञान को उजागर करने में असमर्थ रहे। किन्तु महर्षी दयानंद जी जिन्होंने वेदों के यथार्थ ज्ञान को दुनिया के आगे प्रकाशित किया तथा वेद मंत्रों के गुढ़ विज्ञानों को भी आधुनिक समाज के सामने रखा यह बात उनको बाकी आचार्यों से अलग करती है क्यू की एक ऋषि कोटी के व्यक्ति ही वेदों के यथार्थ अर्थों को ज्यादा अच्छे से खोल सकता है इसमें कोई संदह नही है। स्वामी दयानंद जी के द्वारा यजुर्वेद (3/6) का यथार्थ भाष्य : Yajurveda (3/6) By Rushi Dayanand  महर्षी दयानंद जी ने यजुर्वेद (३/६) में पृथ्वि का भ्रमण मानते हुए अत्यंत ही वैज्ञानिक भाष्य किए हैं लेकिन बाकी पौराणिक आचार्यों के भाष्य इस से भिन्न मिलते है।  और स्वामी करपात्री जैसे लोग भी अपने वेदार्थ पारिजात पुस्तक ( पेज १३००) में महर्षी के पृथ्वी भ्रमण वि

क्या वेद के अनुसार यज्ञों में मद्यपान करना लिखा है?

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  Written By : Vedic Dharmi Ashish     वेद के कुछ मंत्रों पर अक्सर यज्ञ के नाम पर मद्य पान को समर्थन देने का आरोप लगाया जाता है। ऐसी भ्रांति खास कर वेद के जो पाश्चात्य अनुवादकों के द्वारा किए गए वेद के निरर्थक अनुवाद में दिखता है।  अंग्रजों के वेद अनुवाद में यह दर्शाया गया की वैदिक काल में यज्ञ में दारूबाजी करना सामान्य बात थी तथा भारतीयों में याज्ञिक अनुष्ठानों को बदनाम करने की प्रयत्न हुई। हमारे इस लेख में हम क्या यज्ञ में मद्यपान का व्यवहार था अथवा नहीं इसके ऊपर विस्तृत व्याख्या करेंगे। वैदिक यज्ञ में "सुरा" का प्रयोग : वेदों में यज्ञों में कहीं कहीं सुरा का प्रयोग करना विधान है। अब साधारण लौकिक दृष्टिकोण से देखें तो सुरा का अर्थ मद्य के लिए ही व्यवहार में आता है लेकिन वेदों के संस्कृत रूढ़ नही वल्कि यौगिक है। Rigveda (1/116/7) By Griffith  जैसा कि आप देख सकते हो इन अंग्रजों ने किस प्रकार से वेद मंत्र के अर्थ का अनर्थ कर दिया है।  ऋग्वेद (१/११६/७) के मूल मंत्र में कुछ इस प्रकार यह पद आता है-   "श॒तं कुं॒भाँ अ॑सिंचतं॒ सुरा॑याः"॥  अर्थात- यज्ञ में १०० कुंभ को "