मित्रवरुण और उर्वशी अप्सरा के इतिहास का सच।


ज्ञान के सागर वेद में अनेकों शिक्षात्मक प्रसंग तथा प्राकृतिक सृष्टि विज्ञान को ऋषियों ने अपने आख्याइक शैली में प्रस्तुत किया है। इसी अनुसार निरुक्त (१०/१०) में महर्षी यास्क जी लिखते है "ऋषेर्दृष्टार्थस्य प्रीतिर्भवत्याख्यानसंयुक्ता" अर्थात् ऋषियों को अपने दर्शन किए हुए मंत्रार्थ को आख्यान के माध्यम से वर्णन करना रुचिकर लगता है। इसलिए ऋषियों ने जो ज्ञान ईश्वर से प्राप्त किया उन्होने वेदों में विभिन्न संवाद सूक्त तथा कथाओं के माध्यम से उसके यौगिक अर्थों को खोला है। 

     लेकिन दुर्भाग्यवश बोहोत से मंद बुद्धि के लोग जेसे की "वेद का भेद" नाम का वेबसाईट आदि उन मंत्रों के प्रकरण तथा व्याकरणगत यौगिक अर्थों को समझे बिना उनमें अनित्य इतिहास आदि सिद्ध कर वैदिक देवताओं के बारेमें अश्लील भ्रांतिया फैला रहे हैं। आज हम उन्ही भ्रांतियों में से एक भ्रांति जो मित्र और वरूण देव पर लगाया जाता है उसका पर्दाफाश करेंगे।

पूर्वपक्ष के आक्षेप: ऋग्वेद (७/३३/१३) में लिखा है की मित्र वरूण देवताओं का उर्वशी को देख कर वीर्यपात हो गया जिस से वशिष्ठ ऋषि की जन्म हुई ।

वैदिक धर्मी के उत्तर : सर्व प्रथम तो इस पूरे सूक्त में आए आख्यान को पढ़ने पर यह प्रतीत होता है की यह प्राकृतिक तथा अलंकरिक वर्णन है न की कोई अनित्य इतिहास। इस प्रकरण को निरुक्त आदि वेदंग तथा ब्राह्मण ग्रंथों के द्वारा समझना चाहिए।

उर्वशी क्या है : इस प्रकरण में उर्वशी विद्युत को कहा गया है न की कोई ऐतिहासिक स्त्री को । निरुक्त (५/१३) के अनुसार उर्वशी अप्सरा है । यहां निरुक्तकार ने अप्सरा का अर्थ कुछ इस प्रकार करते है की जो अप्सु अर्थात जल में विचरण या व्याप्त होने वाली होती है उसको अप्सरा कहा जाता है।
Nirukta (5/13)
इसी प्रकार वेद तथा निरुक्त के सबसे प्राचीनतम भाष्यकार अचार्य स्कंद स्वामी जी ने निरुक्त(५/१४) के भाष्य में उर्वशी का अर्थ विद्युत् से लेते हैं।
Nirukta(5/14) commentry of acharya Skand Swami 
ऋग्वेद (७/३३/१०) में भी वशिष्ठ को विद्युत से पृथक होने की ही बात कही गई है। 
Rigveda(7/33/10)
इस से यह सिद्ध होता है की यहां उर्वशी कोई स्त्री नही है वल्कि विद्युत् ही उर्वशी है।

मित्र वरुण कौन है : मित्र वरूण के बारे में शतपथ ब्राह्मण (१/८/३/१२) में आया है की "प्राणोदानौ वै मित्रावरुणौ" अर्थात् प्राण नामक वायु (gass) मित्र है और उदान नामक वायु (gass) वरूण है।

Shatpath Brahman (1/8/3/12)

आचार्य स्कन्द स्वामी ने भी अपने निरुक्त (५/१४) के भाष्य में मित्र और वरूण को वायु (gass) ही माना है।

यहां से स्पष्ट हो जाता है की मित्र यहां oxygen नामक वायु है तथा वरुण hydrogen नामक वायु है क्यू की यहां उदान को वरूण कहा गया है और प्रश्न उपनिषद् (३/९) के अनुसार "तेजो ह वा उदानः" अर्थात तेज ( जलनशील) पदार्थ ही उदान वायु है। हाइड्रोजन एक जलनशिल गुणों वाला वायु है इसलिए यहां हाइड्रोजन गैस अर्थ बन सकता है। और उन दोनो के त्वरित विद्युत् (spark) के संयोग में आने से जल की उत्पत्ति होती है।त्वरित विद्युत् (spark) इस रासायनिक अभिक्रिया को गति देता है।  यहां इसी बात को मित्र वरूण के द्वारा उर्वशी के संयोग से "रेत:" अर्थात जल गिरने की बात कही गई है। आमतौर में लौकिक संस्कृत में रेत: का अर्थ वीर्य लिया जाता है पर वैदिक संस्कृत यौगिक होने से निघंटू (१/१३) के अनुसार रेत: शब्द का अर्थ जल का भी नाम है। 

आधुनिक विज्ञान के अनुसार भी hydrogen तथा oxygen के त्वरित विद्युत् (spark) अर्थात् ऊर्जा सम्मिलन होने से जल की उत्पति होती है।

ऋग्वेद (८/३३/१३) में लिखा है की मित्र वरुण का रेत: कुंभ में गिर गया। इस पर अथार्वेद (११/३/११) में आया है की यह भूमि ही अन्न पकने के लिए कुंभी रूप है ।  

अर्थात मित्र वरूण तथा विद्युत के संयोग से जो जल गिरते हैं वह भूमि रूपी कुंभ में आते है।

वेदों में अनेकों जगह मित्र वरूण को जल के कर्ता के रूप में कहा गया है। जैसे की-

मैत्रावरुणौ वा अपां नेतारौ (तैत्तिरीयसंहिता 6/4/3/3) अर्थात्- मित्र और वरूण जेलों को लाने वाले हैं।
मित्रावरुणौ वृष्ट्याधिपती तौ मावताम् । (अथर्ववेद 5/24/5) अर्थात्- मित्र वरुण वृष्टि द्वारा हमारी रक्षा करें।

वशिष्ठ और अगस्त्य कौन है : शतपथ ब्राह्मण (८/१/१/६) के अनुसार "प्राणो वै वसिष्ठ" अर्थात प्राण को वसिष्ठ कहा जाता है। आज हम सब को पता है की जल ही जीवन है । जल के बिना जीवन संभव नहीं है इसलिए मित्र वरूण रूपी वायु तथा विद्युत् आदि के सयोग से जो जल वर्षा आदि के रूप में गिरते हैं उन्ही से प्राणियों में प्राण आते हैं यही प्राण ही वसिष्ठ है । ऋग्वेद (7/33/11) के अनुसार यह वशिष्ठ रूपी प्राण जब जल कण बनते हैं तो पुष्कर अर्थात् आकाश में ( निघंटू १/३ के अनुसार) इसको धारण किया जाता है वही इसका प्रथम जन्म है । और अगस्त्य इस प्राण रूपी जल को इसके निवास स्थान तक ले जाते है। तो यह अगस्त्य कोन है "अगानां वृक्षाणां संस्त्यानं संघातः " अर्थात् गहन वन जो कि मेघों को आकृष्ट करके वसिष्ठ रूपी जल को उसके निवास-स्थान अन्तरिक्ष से वर्षा रूप में नीचे लाते हैं।
Nirukta (5/14) Commentry by Acharya Skand Swami 
आचर्य स्कन्द स्वामी जी ने भी अपने भाष्य में कुछ इसी प्रकार के व्याख्या किए हैं उन्होने मित्र का अर्थ वायु किया है तथा वरूण का अर्थ सूर्य किया है और उर्वशी का अर्थ विद्युत् से लिया है। जब सूर्य अपने किरणों से मेघ बनाता है और वायु उन मेघों को एक दूसरे के निकट इक्कठा कर उनमें विद्युत् उत्पन्न करता है उस से वर्षा होती है वही जल ही उनके वीर्य जैसा है और यही जल ही सारे प्राणियों के लिए प्राण अर्थात् वसिष्ठ है।

इस से ही पता चलता है की यह मित्र वरूण तथा उर्वशी का आख्यान कोई अश्लील इतिहास नही बल्कि एक अलंकारिक तथा प्राकृतिक विज्ञान का अख्याइक रूप मात्र ही है।

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  4. ISKA BHI PARTS MEIN KHANDAN LAAIYE AARYa ji https://muslimallegationhunters.home.blog/2019/09/08/the-reality-of-women-in-hinduism/

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  5. Acharya Skand Swami ji ne , bhi Mitra Varun ka artha "VAYU" hi bataya hai (3rd to 7th line Padhiye)

    Aur Surya se khiche jane ke karan MitraVarun kehlata hai

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