Flat Earth In Vedas (Debunked)


 Written by - Vedic Dharmi Ashish

Four Corners Of Earth In Vedas (Debunked):

vedkabhed website तथा आज कल के विधर्मियों के अनुसार यजुर्वेद के ब्राह्मण ग्रंथ शतपथ ब्राह्मण (6/1/2/29) और ऋग्वेद (10/58/3) के मंत्रों में चार कोने की धरती लिखा हैं, ऐसा झूठे दावे करते हैं।

     
Shatpath Brahmana (6/1/2/29)

 
    वास्तव में शतपथ ब्राह्मण (6/1/2/29) के मंत्र में यहां पृथ्वी की नहीं अपितु यज्ञ वेदी की बात चल रही है। हम जानते हैं कि साहित्य में कोई बात को समझाने के लिए उपमा का प्रयोग होता हैं। उसी तरह यहां पर यज्ञ वेदी को ही पृथ्वी का उपमा दिया गया हैं क्यों कि यज्ञ वेदी पृथ्वी से ही बनती हैं इसलिए बोला गया हैं की जिस प्रकार पृथ्वी का चार दिशाएं होती हैं उसी प्रकार यज्ञ वेदी का चार कोने होते हैं। यहां पृथ्वी की दिशाओं का उपमा दिए गए हैं। 
इस कंडिका से पृथ्वी का चार कोने सिद्ध नहीं होते चूँकि चारों दिशाएँ किसी भौतिक रूप में मौजूद नहीं हैं, इसलिए वे किसी भी वस्तु के कोने नहीं हो सकते हैं।
   
Satpath brahman (7/1/1/37)

अब देखिए उसी शतपथ ब्राह्मण में ही साफ साफ पृथ्वी लोक को गोल बताया गया हैं। शतपथ ब्राह्मण (7/1/1/37) में लिखा हैं कि "परिमंडल उ वा अयं लोक:" अर्थात यह लोक यानिकि पृथ्वी लोक परिमंडल हैं। संस्कृत में "परिमंडल" शब्द का अर्थ गोल ही होता हैं।
Satpath brahman (6/7/1/26)
शतपथ ब्राह्मण (६/७/१/२६) में भी इस लोक अर्थात् पृथ्वी लोक को गोल ही बताया गया हैं।
Meaning of "Parimandal"
 
     इसी प्रकार सामवेद के ब्राह्मण ग्रंथ जैमिनीय ब्राह्मण में भी पृथ्वी को गोलाकार ही बताया गया हैं।
      

Jaiminiya Brahamn Of Samveda (1/257)

      सामवेद के ब्राह्मण ग्रंथ जैमिनीय ब्राह्मण में पृथ्वी, सूर्य, चंद्र आदि के लिए भी "परिमंडल" (गोलाकार) शब्द आया है। इससे यह सिद्ध होता हैं कि ऋषियों ने वेदों पर जो व्याख्या ब्राह्मण ग्रंथों में दिए हैं उन्होंने वेद में पृथ्वी को गोल ही माना हैं।
     
Kathak Brahaman (1/6 &1/7)

कृष्णयहुर्वेद का काठक ब्राह्मण में भी लिखा है "मण्डलो ह्ययं लोकोऽनेन" अर्थात- यह लोक यानिकि पृथ्वी गोलाकार हैं।

अगला आक्षेप ऋग्वेद (10/58/3) पर भी लगाया जाता हैं की इसमें धरती का चार कोने बताए गए हैं। अब उस मंत्र का समीक्षा करते हैं।
     

Rigveda (10/58/3)

       इस मंत्र में चार कोने नहीं बल्कि भूमि के चारों ओर जो ढलाने होते हैं उसकी वर्णन किया गया हैं। 


हम आज जानते हैं कि पृथ्वी का जो वास्तविक आकार हैं वह ऐसा ही हैं की पृथ्वी के कुछ भाग कहीं पर धसा हुआ है तो कोई भाग थोड़ा उठा हुआ है। इसलिए वेद में कहा गया हैं की चारों ओर से ढलान वाली भूमि।
      
Rigveda (10/58/3)
      प्राचीन भाष्यकार आचार्य सायण ने भी ऋग्वेद (10/58/3) के भाष्य में लिखते हैं कि -"चतुर्दिक्षु भ्रंशो यस्याः" जिसका अर्थ है कि चारों दिशाओं में झुकाब या ढलान वाली भूमि।
        इतना ही नहीं आचार्य सायण ने तो आपने वेद भाष्य में पृथ्वी और ब्रह्मांड को गोल भी माना हैं।

Rigveda (10/90/1) by Acharya Sayana 
   
   आचार्य सायण ने ऋग्वेद (10/90/1) का भाष्य करते हैं कि "भूमिं ब्रह्माण्ड गोलकरूपां " अर्थात पृथ्वी और ब्रह्मांड दोनों गोल हैं। प्राचीन वेद भाष्य से भी यह सिद्ध होता हैं कि वेद में पृथ्वी गोल ही है।

Gopath Brahman (2/4/10)
       वेद के व्याख्यान ग्रंथ ब्राह्मण ग्रंथों में तो यह तक लिखा हैं की यह सूर्य न तो कभी अस्त होता हैं और न ही कभी उदय होता हैं। जब लोग ऐसा मानते हैं कि यह अस्त हो गया है तो वास्तव में इसका दो विपरीत प्रभाव होता हैं। जिस प्रदेशों में सूर्य अस्त होता हुआ प्रतीत होता है,वहा रात होता हैं और इसके विपरित प्रदेशों में तब दिन होता हैं। इसी प्रकार जब पृथ्वी के दूसरे हिस्से के लोग यह मानते हैं की सूर्य उदय हो रहा है तो इसके विपरीत भाग में रात हो रहा होता हैं। 
     अथर्वेद का ब्राह्मण ग्रंथ गोपथ ब्राह्मण से यह स्पष्ट पता चलता है कि ऋषियों के वेदों पर व्याख्या के अनुसार पृथ्वी गोल हैं और घूमती भी हैं इसलिए इसके कुछ हिस्सों में जब दिन होता है तो उसके विपरीत हिस्सों में रात होता हैं। वेदों पर प्राचीन ऋषियों के कुछ ऐसा ही वैज्ञानिक व्याख्या हम को ऋग्वेद के व्याख्यान ग्रंथ "ऐतरेय ब्राह्मण (3/44)" में भी मिलता हैं। 
      Ved ka bhed website ने वाल्मीकि रामायण (5/9/26) पर भी अपने झूठे अनुवाद दिखा कर यह आक्षेप लगाए की इसमें धरती को चार कोने हैं ऐसा लिखा हैं।
Valmiki Ramayana (5/9/26)
   
जबकि वाल्मीकि रामायण के उस श्लोक में पृथ्वी को विस्तीर्ण कहा गया हैं जिसका अर्थ होता हैं विशाल होना। इस श्लोक में कही पर भी चार कोना शब्द ही नहीं है। इसी से इनका झूठ का पर्दाफाश होता हैं।

The End Of The Earth In Vedas (Debunked) :   

वेद के कुछ मंत्रों पे यह भी आक्षेप लगाया जाता है कि इसमें पृथ्वी की अंतिम छोर हैं ऐसा लिखा हैं।
     वास्तव में वेद के अनुसार पृथ्वी का केंद्र भाग ही पृथ्वी का अंतिम भाग के रुप में दर्शाया गया हैं।

ऋग्वेद (1/164/34 - 35) :
पृच्छामि त्वा परमन्तं पृथिव्याः पृच्छामि यत्र भुवनस्य नाभि:। 

अर्थ - पूछते हैं कि पृथ्वी का अंतिम भाग तथा पृथ्वी का केंद्र भाग क्या है?

इयं वेदि: परो अन्त: पृथिव्या अयं यज्ञो भुवनस्य नाभि:।

अर्थ- यह यज्ञ वेदी ही पृथ्वी की अंतिम भाग हैं तथा यह यज्ञ वेदी ही इसकी केंद्र भाग भी है।

    इन वेद मंत्रों में प्रश्न उत्तर शैली में लिखा है कि इस पृथ्वी का अंत क्या है? इस भुवन का मध्य क्या है? अगले मंत्र में इसका उत्तर इस प्रकार से लिखा है कि यह यज्ञवेदी ही पृथ्वी की अंतिम सीमा है। यह यज्ञ ही भुवन का मध्य है। अर्थात जहाँ खड़े हो वही पृथ्वी का अंत है तथा यही स्थान भुवन का मध्य है। किसी भी गोल पदार्थ का प्रत्येक बिंदु (स्थान) ही उसका अंत होता है और वही उसका मध्य होता है। 
       वेद के इस अलंकारिक वर्णन से कितनी अच्छी तरह समझाया गया है कि पृथ्वी गोल हैं इसलिए जहां से आरंभ करोगे वही उसका अन्त तथा मध्य भाग भी होगा। इसी प्रकार अन्य वेद मंत्रों में जहां जहां भी पृथ्वी की अंतिम भाग की बात है यह तर्क वहां भी लगता है ।

Is It Written In Vedas That The Earth Can Be Wrapped Like A Skin? 
ऋग्वेद (8/6/5) पर यह आक्षेप लगाए गए हैं कि इसमें पृथ्वी को चमड़े के तरह लपेटना और खोलने के बारे में लिखा हैं।
Rigveda (8/6/5)
    जबकि इस मंत्र में यह बताया गया हैं जैसे आवरण या चर्म शरीर को आबृत कर के उनका सुरक्षा करते हैं ठीक उसी प्रकार परमात्मा इन्द्र भी सर्व व्यापक हैं जो पृथ्वी और ब्रह्मांड को व्याप्त कर के अपने तेज से उनका संरक्षण करते हैं।    

वेद में अंतरिक्ष यानिकि वायुमंडल को भी पृथ्वी की चर्म का उपमा दिया गया है क्यू कि हमारा वायुमंडल भी पृथ्वी का रक्षा करता हैं।

निष्कर्ष : ईश्वरीय ज्ञान वेद तथा इसके व्याख्यान ग्रंथ ब्राह्मण ग्रंथों से यह सिद्ध हैं कि पृथ्वी का आकार वैदिक धर्म में गोल ही बताए गए हैं।

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