Scientific Error In Vedas Debunked (part-2)
Written by -Vedic Dharmi Ashish
Are There Sky & Earth On The Pillars In Vedas?
म्लेच्छों के द्वारा वेद मंत्रों पर यह आक्षेप लगाए गए हैं की वेद अनुसर आकाश और पृथ्वी खंबे पर टिका है। ये जाहिल लोगों का झूठे दावों के अनुसार ऋग्वेद (1/160/4), ऋग्वेद (8/41/10) में लिखा है कि धरती खंबे पर हैं और ऋग्वेद (6/72/2),ऋग्वेद (6/47/5), ऋग्वेद (10/111/5) इत्यादि मंत्रों पर खंबे पर आकाश का होना लिखा हैं।अब इसका समीक्षा करते हैं।
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Rigveda (6/72/2) |
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Rigveda (8/41/10) |
सबसे पहली बात आप सब को ज्ञात होगा कि वेद के शब्द यौगिक होते हैं। इसलिए इन मंत्रों में जो "स्कम्भ" शब्द आया हैं उसका रूढ़ अर्थ लेना मूर्खता है।
वास्तव में वेद में आए "स्कम्भ" शब्द का सही सही अर्थ और व्याख्या हम को खुद वेदों में ही मिलता हैं।
अथर्ववेद के कांड 10 का 7वा सूक्त में ही "स्कम्भ" शब्द का अर्थ का ज्ञात होता हैं।
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Atharvaveda (10/7/12) |
अथर्ववेद (10/7/12) मैं लिखा हैं कि पृथ्वी, अंतरिक्ष और सूर्य लोक यह सब स्कम्भ मैं स्थित हैं। यहां कुछ मूर्ख लोग यह बोलेंगे की यहां तो लिखा हैं की धरती आकाश यह सब कोई खंबा पे टिका हुआ है। पर ऐसा नहीं है आगे के व्याख्या देखिए।
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Atharvaveda (10/7/20) |
इस मंत्र को देखिए यहां पर यह प्रश्न आया हैं कि जिससे ऋग्वेद,यजुर्वेद,सामवेद,अथर्ववेद प्रकट हुआ वो स्कम्भ क्या है?
अगर वेद में आए "स्कम्भ"शब्द का अर्थ हम कोई भौतिक खंबा से लेंगे तो खुद सोचिए क्या कोई जड़ वस्तु से वेदों का प्रकटीकरण हो सकता हैं? लेकिन आगे इस प्रश्न का उत्तर दिया गया है।
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Atharvaveda (10/7/29-30) |
जो स्कम्भ को जनता हैं वह जानता है कि यह सबका आधार रूप सब का परमेश्वर इन्द्र के द्वार ही पृथ्वी और अंतरिक्ष आदि लोक परिचालित होते हैं। उनको आधार प्रदान करने वाले प्रभु ही वह "स्कम्भ" हैं।
तो वेद में आकाश आदि खंबे पर हैं ऐसा झूठा दावे करने वालो को कुछ भी आरोप लगाने से पहले वेद के यौगिक अर्थों को समझना चाहिए ऐसा मेरा इन मंद बुद्धि वालों से यह अपेक्षा रहेगा।
Is There Earth & Sky On A Bull In The Vedas?
अथर्ववेद (4/11/1) पर यह आक्षेप लगाए गए हैं की इसमें धरती कोई बैल पर टिका है ऐसा लिखा हैं।
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Atharvaveda (4/11/1) |
इस सूक्त के देवता में ही स्पष्ट लिखा है "अनड्वान् इन्द्ररूपः" अर्थात सर्व धारक ईश्वर को यहां बैल की संज्ञा दिया गया है यह बात इस सूक्त के देवता से भी स्पष्ट होता हैं।
इसी प्रकार अथर्ववेद(4/11/2) मैं भी लिखा हैं की "अनड्वान् इन्द्र:" अर्थात यहां कोई प्राणीमात्र वाली बैल की बात नहीं है अपितु ईश्वर को ही यहां बैल की संज्ञा दिया गया है। साहित्य मैं उपमा के साथ बातों को समझाया जाता हैं।
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Swetaswatar Upnishad (5/4) |
श्वेताश्वतर उपनिषद् (5/4) के अनुसार "अनड्वान्" शब्द का अर्थ सूर्य भी होता। इसलिए अधिदैविक अर्थ में यहां अर्थ सूर्य भी लिया जा सकता है।
ved ka Bhed website द्वारा शतपथ ब्राह्मण (3/3/4/2) पर भी यह आक्षेप लगाए गए हैं की इसमें लिखा हैं की आकाश किसी बैल पर हैं।
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Satpath brahman (3/3/4/2) |
इस कंडिका में यह जो मंत्र है वह यजुर्वेद (4/30) के व्याख्यान में आया हैं। और यजुर्वेद के उस मंत्र में ऐसा कोई बात ही नहीं है तो शतपथ में आकाश बैल पर होने का सवाल ही नहीं उठता।
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Yajurveda(4/30) |
वास्तव में यहां वृषभ शब्द किसी प्राणी के लिए नहीं यहां उसका अभिप्राय वरुण यानिकि ईश्वर से हैं। इस मंत्र का देवता भी वरुण देव ही है इससे यह बात सिद्ध होता हैं।
"वृषभ" शब्द का एक अर्थ यहां आधिदैविक अर्थ में सूर्य भी बन सकता है। अथर्ववेद (4/5/1) में भी "वृषभ" शब्द सूर्य के लिए भी आया है।
निष्कर्ष : यह सभी प्रमाणों से यह निष्कर्ष निकलता है की वेद में ऐसा कहीं नहीं लिखा कि आकाश या पृथ्वी कोई खंबा या कोई बैल पर हैं। वेद के यौगिक शब्दों का अर्थों को समझ के ही मंत्रों के भावार्थ निकालना चाहिए।
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