Written by: Vedic Dharmi Ashish
वेदों में पिता प्रजापति और पुत्री उषा से संभोग के आक्षेप :
विधर्मियों के द्वारा अनार्ष पुराणों में आए ब्रह्मा सरस्वती के पिता पुत्री संभोग को वेदों में दिखाने के लिए यह लोग ऋग्वेद (१०/६१/५-७) का प्रमाण देते हैं तथा वैदिक धर्म में पिता पुत्री संभोग को दिखाने का प्रयत्न करते हैं।
इस लेख में हम वेदों तथा ब्राह्मण ग्रंथों में आए इस पिता पुत्री संभोग आदि आरोपों का विश्लेषण करेंगे की क्या वास्तव में वैदिक धर्म पिता पुत्री संभोग को समर्थन करता है ? अथवा बात कुछ और है जिसको विकृत ढंग से प्रचारित किया जा रहा है।
क्या वेदों में ब्रह्मा सरस्वती के पिता पुत्री संभोग का वर्णन है?
ऋग्वेद (१०/६१/५-७) इसी पर विधर्मी आरोप लगाते हैं की इसमें ब्रह्मा सरस्वती के अनैतिक संबंध की बात है।
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Rigveda (10/61/5-7) |
लेकिन यह लोग प्रमाण देने से पहले पूरा प्रकरण नहीं पढ़ते की वहां उषा किसको कहा जा रहा है या प्रजापति का अर्थ प्रकरण अनुसार क्या होगा इन सब पर यह लोग प्रमाण दिखाते नहीं है। उषा किसे कहा जाता है?
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Rigveda (10/61/4) |
अगर हम उस प्रकरण को ठीक से पढ़ें तो ऋग्वेद (१०/६१) के मंत्र नंबर ४ में ही यहां उषा किसको कहा गया है यह स्पष्ट किया गया है की काली रात जब लाल रंग वाली उषा में प्रवेश करती है। |
रात्रि के समाप्ति पर लाल रंग वाली उषा का आगमन |
अर्थात यहां रात्रि के समाप्ति के समय भोर में जो आकाश में हमे लाल वर्ण दिखाई देता है उस समय काल को इस प्रकरण में उषा कहा गया न की किसी साकार देवी सरस्वती को उषा कहा है।
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Nirukta (2/18) |
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Unadi Sutra (4/235) |
निरुक्त (२/१८) तथा उणादि सूत्र (४/२३५) में भी लिखा है की उषा वह है जो रात्रि के अंधकार को दूर करती हैं रात्रि के उत्तरवर्ती काल को जब अंधकार दूर होने लगता है उस प्रातःकाल को उषा कहा जाता है।
वेदों में उषा को किसकी पुत्री कहा गया है?
अब देखते हैं क्या वेदों में उषा को ब्रह्मा के पुत्री बोला गया है अथवा नहीं?
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Rigveda (4/52/1), Rigveda (7/81/1), Samveda (19/2/1) |
वेदों के अनेकों मंत्रों में उषा को "दिवो अदर्शि दुहिता" कहा गया है इस पद का अर्थ करते हुए आचार्य सायण लिखते हैं "द्योतमानस्य आदित्यस्य दुहिता उषाः" जिसका अर्थ होता है उषा प्रकाशवान सूर्य के पुत्री है। |
ऋग्वेद (७/८१/१) सायण के मूल संस्कृत भाष्य |
आचार्य सायण ने ऋग्वेद (७/८१/१) के भाष्य में भी "दिव: दुहिता" का अर्थ द्युलोक अर्थात् सूर्य के पुत्री उषा किया है।
अब अगर उषा ब्रह्मा जी के पुत्री होती तो उनको वेदों में सूर्य के पुत्री न बोला जाता क्यों कि पुत्री तो किसी एक के ही होते हैं। इस से सिद्ध हुआ कि उषा का ब्रह्मा जी से कोई भी संबंध नहीं है अपितु उषा का संबंध सूर्य से है जो कि पिता पुत्री का संबंध है।
प्रजापति किसको कहा गया है?
अब प्रश्न यह उठेगा कि अगर उषा सूर्य पुत्री है तो ऋग्वेद (१०/७१/६-७) में उषा को प्रजापति के पुत्री क्यों कहा गया है?
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Atharvaveda (17/1/27) |
उत्तर: "प्रजा" का अर्थ है साम्राज्य
पति का अर्थ है उस साम्राज्य का पालक पोशक जिससे उस साम्राज्य पर जीवन संभव है, स्वामी, जो उस सम्राज्य की देख रेख करता है।
जैसे देश का राष्ट्रपति, इसलीये राजा प्रजा का "प्रजापति" है, ईश्वर ब्रह्माण्ड का "प्रजापति" है, प्राण शरीर का प्रजापति है इसी प्रकार सूर्य पृथ्वी का "प्रजापति" है।
वेदों में प्रजापति पद का बहुत सारे अर्थ प्रचलित है जैसे अथर्ववेद (११/७/१६) में ब्रह्मचारी आचार्य तथा राजा को प्रजापति बोला जाता है, अथर्ववेद (११/४/१२) में प्राण को प्रजापति बोला गया है, यजुर्वेद (३१/१९) में परमात्मा को भी प्रजापति बोला गया है तथा अथर्ववेद(१७/१/२७) में सूर्य को भी प्रजापति आधिदैविक पक्ष में बोला गया है। लेकिन हर शब्द का अर्थ हमे प्रकरण अनुसार करना चाहिए। अगर यहां उषा के पिता को प्रजापति बोला गया है तो प्रकरण अनुसार प्रजापति का अर्थ यहां सूर्य ही होगा क्यों कि वेदों के अन्य मंत्रों में उषा को सूर्य के पुत्री कहा है।
ब्राह्मण ग्रंथों तथा प्राचीन आचार्यों के भाष्य में उषा और प्रजापति के अर्थ :
ऋग्वेद(१०/६१/५-७) में आए प्रजापति और उषा प्रकरण का व्याख्या हमे वेदों के व्याख्यान ग्रंथ शतपथ ब्राह्मण (१/७/४) और ऐतरेय ब्राह्मण(३/३३) में मिलता है और दोनों में समान व्याख्या आया है।
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शतपथ ब्राह्मण (१/७/४/१) सायण और हरिस्वामि के संस्कृत भाष्य। |
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शतपथ ब्राह्मण (१/७/४/१) सायण और हरिस्वामि संस्कृत भाष्यानुवाद |
शतपथ ब्राह्मण में आए प्रजापति उषा प्रकरण का व्याख्या करते हुए आचार्य सायण और हरिस्वामी ने बताया है कि यहां उषा का अर्थ ४ प्रकार से हो सकता है जैसे लोकात्म रूप से द्युलोक (आकाश), प्राणपिण्डात्म रूप से रोहिणी नाम नक्षत्र,कालात्म रूप से उषाकाल तथा यज्ञात्म रूप से वाणी। उसी प्रकार प्रजापति का भी ४ अर्थ संभव है जैसे लोकात्म रूप से सूर्य लोक, प्राणपिंडात्म रूप से मृगशिरा नक्षत्र, कलात्म रूप से संवत्सर और यज्ञात्म रूप से यज्ञ। लेकिन उन्होंने यहां उषा का अर्थ कोई साकार देवी सरस्वती आदि या प्रजापति का अर्थ ब्रह्मा नहीं बताया है। |
Shatpath Brahman (6/1/3/8) |
शतपथ ब्राह्मण में कलात्मक रूप से संवत्सर को ही प्रजापति कहा गया है और वह उषाकाल में गर्भ स्थापन करता है।  |
Shatpath Brahman (10/2/4/3) |
शतपथ ब्राह्मण के अनुसार संवत्सर ही सूर्य (आदित्य) है यहां सूर्य को कलात्मक रूप से संवत्सर का प्रतीक माना गया है और प्रश्न उपनिषद (1/9) के अनुसार भी "संवत्सरो वै प्रजापति" अर्थात - संवत्सर ही प्रजापति है। |
ऐतरेय ब्राह्मण(३/३३) आचार्य सायणभाष्य |
ऐतरेय ब्राह्मण(३/३३) में प्राणपिंडात्मक दृष्टिकोण से आचार्य सायण ने भी प्रजापति का अर्थ मृगशिरा नक्षत्र किया है तथा उनके पुत्री उषा का अर्थ रोहिणी नक्षत्र किया है न की कोई ऐतिहासिक व्यक्ती विशेष।
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ऋग्वेद (५/४७/१) आचार्य सायणभाष्य
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आचार्य सायण ने ऋग्वेद (५/४७/१) के भाष्य में उषा को द्युलोक अर्थात् सूर्य के पुत्री अर्थ किया है (ऋग्वेद १/१६४/३३ में आचार्य सायण लिखते हैं "आदित्यो द्यौ उच्यते" अर्थात् सूर्य लोक को द्युलोक कहते हैं) और इसके पुष्टि के लिए उन्होंने ऐतरेय ब्राह्मण (३/३३) का एक कंडिका का प्रमाण दिया जो कि है "प्रजापतिर्वै स्वां दुहितरमभ्यध्यायद्दिवमित्यन्य आहुरुषसमित्यन्ये" अर्थात् उन्होंने भी यहां प्रजापति से द्युलोक अर्थात सूर्य का ही ग्रहण किया है। यही समान कंडिका शतपथ ब्राह्मण (१/७/४/१) में भी आया है।
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महर्षि दयानन्द जी कृत ऋग्वेदादि भाष्य भूमिका |
महर्षि दयानन्द जी ने भी ऐतरेय ब्राह्मण (३/३३) के प्रमाण देकर यह सिद्ध किया है कि प्रजापति यहां सूर्य है तथा उषा प्रातःकाल है। जब प्रातःकाल में सूर्य उदित होता है तो वह अपनी रश्मि छोड़ता है वही आलंकारिक रूप से पिता पुत्री संबंध कहा गया है। |
आचार्य कुमारिल भट्ट के तन्त्रवार्तिक (Page -२००) |
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तन्त्रवार्तिक के अंग्रेजी अनुवाद ( Page -१८९) |
७ वी शताब्दी के प्राचीन आचार्य कुमारिल भट्ट ने भी अपने मीमांसा दर्शन के तन्त्रवार्तिक में यह लिखते हैं कि प्रजापति बोलते हैं सूर्य को तथा उसके पुत्री उषा प्रातःकाल को बोलते हैं जब सूर्य प्रातःकाल में उदय होकर अपने किरणों को छोड़ता है तो वही अलंकारिक रूप से स्त्री पुरुष संभोग जैसा है।
तो इस से यह सिद्ध होता है कि प्रजापति और उषा दोनों प्राकृतिक तत्वों को यहां कहा गया है न कि ब्रह्मा सरस्वती को।
प्रजापति और उषा प्रकरण का तात्पर्य क्या है?
अब कुछ लोग प्रश्न करेंगे कि अगर ऋषियों द्वारा यह कोई प्राकृतिक घटनाओं को भी समझाया जा रहा तो इस प्रकार के अश्लील अलंकार के माध्यम से समझना क्या ठीक है?
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Nirukta (10/10) |
उत्तर: सबसे पहली बात ऋषियों का जो मंत्रार्थ का शैली है वह आख्यायिक होता है। निरुक्त (१०/१०) में महर्षी यास्क जी लिखते है "ऋषेर्दृष्टार्थस्य प्रीतिर्भवत्याख्यानसंयुक्ता" अर्थात्- ऋषि अपने देखे हुए मंत्र के अर्थ को कोई आख्यान अर्थात् काल्पनिक कहानियों के माध्यम से समझाते हैं जिसमें उसका प्राकृतिक तथा शिक्षात्मक दृष्टिकोण भी होता हैं।
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Shatpath Brahman (1/7/4) |
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Shatpath Brahman (1/7/4/4) |
अब शतपथ ब्राह्मण में प्रजापति उषा प्रकरण को प्राशित्रहरण आख्यान बोला गया है अर्थात् यह प्रकरण केवल एक कहानी है इसलिए शतपथ ब्राह्मण में इसको आख्यान कहा गया है। प्राशित्र एक प्रकार का हवी है जिसको यज्ञ में रुद्र के लिए अर्पित किया जाता है। उस समय रुद्र के स्तुति या गुणगान के हेतु ऋग्वेद (१०/६१/७) के मंत्र उच्चारण किया जाता हैं, क्यू की इस मंत्र में रुद्र के रौद्रत्व का ही वर्णन है।
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Rigveda (10/61/7) Commentry of Sayana |
आचार्य सायण ने ऋग्वेद(१०/६१/७) में लिखा है की जब पिता प्रजापति ने अपने पुत्री उषा से अनुचित कार्य किया तो श्रेष्ठ देवों ने उस समय कर्मों के रक्षक रुद्र को जिनको यहां वास्तोष्पति ब्रह्म भी बोला गया है उनको प्रकट किया। अर्थात् जब कर्मों के हानि घटी तो कर्म के रक्षा हेतु रुद्र को देवताओं ने बुलाया।
जब पाप द्वारा कर्म की हानि होता है तो रुद्र अर्थात परमात्मा कर्म के रक्षा हेतु पापियों को दंड देते है इसको हम आगे ऋषियों के ब्राह्मण ग्रंथों में आए आख्यान के माध्यम से समझते हैं।
वैदिक धर्म में पिता पुत्री संभोग है एक दंडनीय अपराध:
ऋग्वेद (१०/६१/७) में आए रुद्र के रौद्रत्व का व्याख्या करने के लिए ऋषियों ने प्रजापति उषा आख्यान अर्थात् कहानी के माध्यम से बताया।
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Shatpath Brahman (1/7/4/3) |
शतपथ ब्राह्मण (१/७/४/३) में ही आया है की प्रजापति के इस पाप कर्म के लिए देवों ने रुद्र को कहा कि यह प्रजापति ने अपने पुत्री से व्यभिचार रूपी पाप किया है इसलिए इसको दंड दो और रुद्र ने उस प्रजापति को तीक्ष्ण बाण द्वारा मार डाला।
अर्थात् यहाँ ऋषियों ने दो प्राकृतिक तत्वों सूर्य तथा उषा के व्यक्तिकरण (personification)कर के एक कहानी के माध्यम से यह शिक्षा दिया है कि वैदिक धर्म में जो पुत्री से व्यभिचार आदि करेगा उसको इसी प्रकार मृत्यु दंड मिलेगा।
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Aitareya Brahamn (3/33) |
ऐतरेय ब्राह्मण (३/३३) तथा मैत्रायणी संहिता (४/२/१२) में भी जो प्रजापति उषा आख्यान आया है उसमें भी कहीं भी पुत्री संभोग का समर्थन नहीं है उल्टा उसमें भी यह लिखा है कि प्रजापति ने पुत्री संभोग रूपी अनुचित कार्य को किया है इसलिए प्रजापति को रुद्र द्वारा मृत्यु दंड मिला।  |
Valmiki Ramayana (4/18/22) |
वाल्मीकि रामायण में भी मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम जी ने बोला है कि अगर कोई व्यक्ति अपने पुत्री,बहन या भाई के पत्नी के निकट व्यभिचार करने के उद्देश्य से जाता है तो उसका दंड एकमात्र है वह है मृत्युदंड।
निष्कर्ष : अर्थात् वेदों तथा उसके ब्राह्मण ग्रंथों में कहीं भी पिता पुत्री संभोग का कोई समर्थन नहीं है उल्टा उनमें आलंकारिक कहानियों के माध्यम से ऋषियों ने यह शिक्षा दिया है कि पुत्री से व्यभिचार करना पाप और अपराध है और इसके लिए सनातन वैदिक धर्म में मृत्यु दंड का विधान भी है।
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