Child Marriage In Hinduism Debunked
Written By - Vedic Dharmi Ashish
बाल विवाह समाज की एक ऐसी कुरीति है जिसको समय के साथ धर्म के साथ जोड़ा गया इस से सनातन वैदिक धर्म पर विधर्मी तथा वामपंथियों द्वारा अनेकों आक्षेप किए गए। इस ब्लॉग में हम वैदिक विवाह संस्कार के वास्तविक स्वरूप को समझेंगे तथा समाज में समय के साथ जो कुप्रथा प्रचलित हुई क्या वैदिक धर्म उसको समर्थन करता है अथवा नहीं इसके विषय में भी विस्तार से समझेंगे।क्या वेद में बाल विवाह है?
सनातन वैदिक धर्म का मूल तथा सर्वोच्च सर्वश्रेष्ठ शास्त्र वेद है। इसलिए सनातन धर्म के हर विषय को समझने के लिए अन्य ग्रंथों से भी ज्यादा दिव्य ईश्वरीय वाणी वेद ही प्रमाणिक माना जाता है।
वेदों में विवाह के प्रकरण खास कर के ऋग्वेद (१०/८५) तथा अथर्ववेद (१४/१ और १४/२) में आता है इसके अलावा वेदों के अन्य सूक्तों में भी विवाह आदि विषयों पर संक्षेप वर्णन मिलता है इनमे अथर्ववेद के ब्रह्मचर्य सूक्त आदि प्रमुख है।
अगर हम बात करे अथर्ववेद में आए विवाह सूक्त की तो उसके एक मंत्र में विवाह योग्य दुल्हन के लिए एक संस्कृत शब्द प्रयोग किया गया है वो है "योषा"।
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Atharveda (14/1/56) |
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Atharvaveda (14/2/37) |
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Rigveda (10/27/12) |
इस मंत्र में यह भी ध्यान रखने वाली बात है की यहां स्त्री खुद ही अपने पति का चुनाव करने को बोला गया है जबकी कोई छोटी बच्ची इतनी परिपक्व नहीं हो सकती की अपने लिए खुद एक अच्छा पति चुन पाए। यह कार्य केवल एक शारीरिक तथा मानसिक रूप से परिपक्वता को प्राप्त हो चुकी युवती ही कर सकती है।
"योषा" शब्द का व्याकरणगत अर्थ:
अब संस्कृत शब्द "योषा" का वैदिक व्याकरणगत धातू परख अर्थ समझते है।
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Unadi Sutra (3/62) |
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Unadi Sutra (1/154) |
युवा, युवती, योषा यह तीनो शब्दों एक ही धातु से बनते हैं वह है "यु मिश्रणे" धातू।
जैसे की -
यु मिश्रणे + कनिन् = युवा
यु मिश्रणे + शतृ + ङीप् = युवती
अर्थात योषा शब्द का धातुगत अर्थ से युवती अर्थ सिद्ध होता है क्यू की युवा, युवती और योषा तीनो शब्द एक ही समानार्थक धातु से बनते हैं।
वेद के अन्य मन्त्रों में भी पत्नी को युवती कहा गया है -
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Rigveda (10/85/9) By Acharya Sayana |
Rigveda (2/35/4)
तमस्मेरा युवतयो युवानं मर्मृज्यमानाः परि यन्त्यापा॥
- युवति स्त्री (युवतयो) युवा (युवानं) पति को प्राप्त होती है।
Rigveda (8/2/19)
ओ षु प्र याहि वाजेभिर्मा हृणीथा अभ्यस्मान् ।
महाँ इव युवजानिः ॥
-इव) जिस प्रकार विचारशील पुरुष (युवजानिः१) अपनी युवति पत्नी के ऊपर (मा+हणीथाः) क्रोध नहीं करता।
Rigveda (8/35/5)
जुषेथां युव॒शेव॑ क॒न्यनां॒॥
-जैसे युवा पुरुष युवति कन्या के वचन ध्यान से सुनते हैं।
वैदिक विवाह सूक्त में स्त्रीयों की शारीरिक परिपक्वता का वर्णन:
वेद में विवाह योग्य युवती स्त्री को शारीरिक परिपक्व होने का भी वर्णन आया है जो यह दर्शाता है की कोई भी अल्प आयु वाली बच्ची विवाह योग्य नहीं हो सकती।
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Atharveda (14/2/14) |
अथर्ववेद के विवाह सूक्त के इस मंत्र में विवाह योग्य कन्या को उर्वरा कहा गया है जिसका अर्थ है जो स्त्री संतान उत्पन्न करने में भालीप्रकार सक्षम हो और एसा गुण किसी छोटी कन्या में नही आ सकती। यह मंत्र उस विवाह योग्य स्त्री की शारीरिक परिपक्वता को दर्शाती है।
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Atharveda (14/2/25) |
वैदिक विवाह सूक्त में स्त्रीयों की बौद्धिक परिपक्वता का वर्णन:
अथर्ववेद के विवाह सूक्त में विवाह योग्य स्त्री की बौद्धिक तथा मानसिक परिपक्व होने का वर्णन मिलता है जो कोई छोटी बच्ची में नही देखी जा सकती।
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Atharveda (14/2/75) |
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Atharveda (14/2/31) |
अथर्ववेद के इन दोनों मंत्रों में विवाह करने वाली कन्या को श्रेष्ठ बुद्धिवाली तथा इंद्राणी के समान उच्च ज्ञानवती होने का वर्णन है।
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Atharvaveda (2/36/1) |
इतनी श्रेष्ठ ज्ञान किसी छोटी बच्ची में तो हो ही नही सकती। इस से साफ पता चलता है विवाह जैसे दायित्वपूर्ण कार्य के लिए एक स्त्री को उभय शारीरिक तथा मानसिक और बौद्धिक स्तर में परिपक्व होना आवश्यक है।
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Atharveda (14/144) & Rigveda (10/85/46) |
अथर्ववेद (१४/१/४४) तथा ऋग्वेद (१०/८५/४६) इन दोनों वेदों के विवाह सूक्त में विवाह करने वाली कन्या को अपनी पतीकुल के परिवार के सारे सदस्यों के प्रति महारानी अर्थात उस परिवार के शासिका होने को कहा गया है। एक शासीका के रूप में उसके बौद्धिक स्तर का अनुमान लगाया जा सकता है क्यू की एक शासिका का दायित्व कोई बच्ची द्वारा वहन नही किया जा सकता।
वेदों में दिए गए उपमा के आधार पर विवाह काल में स्त्री की आयु का अनुमान:
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Atharveda (14/1/17) |
निष्कर्ष: जब सनातन धर्म के मूल ग्रंथ तथा ईश्वरीय वाणी वेद बालविवाह जैसा कुप्रथा का समर्थन नहीं करता तो इस आधार से सनातन वैदिक धर्म पर यह लांछन लगाना की सनातन धर्म में बाल विवाह है यह निराधार ही सिद्ध होता है।
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